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خط ۷۳: |
خط ۷۳: |
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| == نمونه اشعار شیرکو بیکس == | | == نمونه اشعار شیرکو بیکس == |
| (۱)
| | تناسخ |
| | از میان همه روزها اگر |
| | روزی طوفانی بمیری |
| | بسا باز به گونه ببری زاده شوی. |
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| با من بیامیز
| | از میان همه روزها اگر |
| | روزی بارانی بمیری |
| | بسا باز به گونه برکهای زاده شوی. |
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| ای دختر خاکستر و
| | از میان همه روزها اگر |
| | روزی آفتابی بمیری |
| | بسا باز به گونه انعکاس یکی پرتو زاده شوی. |
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| ای سرزمینِ آفات
| | از میان همه روزها اگر |
| | روزی برفی بمیری |
| | بسا باز به گونه کبکی زاده شوی. |
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| که از شرقِ سرت
| | از میان همه روزها اگر |
| | روزی مهآلود بمیری |
| | بسا باز به گونه درهای روشن زاده شوی. |
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| شمع و بخورِ مرگم را میسوزانند،
| | اما من چه؟ |
| | من که این گونه زندهام |
| | من که اینگونه زیستهام |
| | و برای شما |
| | شعرهای بسیاری سرودها م |
| | بسیار بازآمده، دوباره همچون کردستان زاده شوم. |
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| که از شرق تنت
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| شعر و شراره و سرودم را
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| شکنجه میدهند.<ref>1- آفات، شیرکو بیکس، ترجمه: ناصح شریفیان، ناشر مترجم 1376</ref>
| | اگر |
| | از ترانههای من اگر |
| | گل را بگیرند |
| | یک فصل خواهد مرد |
| | اگر عشق را بگیرند |
| | دو فصل خواهد مرد |
| | و اگر نان را |
| | سه فصل خواهد مرد |
| | اما آزادی را |
| | اگر از ترانههای من، |
| | آزادی را بگیرند |
| | سال، تمام سال خواهد مرد. |
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| (۲)
| | <big>پیانو</big> |
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| من صلیبی مار به تن تنیدهام
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| من نفرینی ایزدی ام
| | ناگهان |
| | پرستوهای جان شاعران جهان |
| | پرواز کردند، |
| | چرخی زدند |
| | و بعد به آرامی |
| | فرود آمدند |
| | و در صندوقی نظر کرده آرام گرفتند. |
| | امروز به آن صندوق |
| | پیانو میگوییم. |
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| من سه میخِ روییدهام
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| من از الفبای سنگ
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| از الفبای برف
| | <big>نقاشی</big> |
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| از الفبای شبنم
| | چهار کودک: |
| | ترک، فارس، عرب |
| | و کرد |
| | تصویر مردی را کشیدند. |
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| از الفبای شعله…
| | اولی دستهایش را |
| | دومی سرش را |
| | سومی میانه و پاهایش را |
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| من از تخمِ افسانه
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| سر برآوردهام…<ref>9- مرا به عشق بسپارید، شیرکو بیکس، ترجمه: رضا کریم مجاور، نشر افراز 1390</ref>
| | کودک کرد |
| | تفنگی بر دوشش کشید. |
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| (۳)
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| === روییدن از خاکستر ===
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| از آن صبحدم که مغرب زاده شد{{سخ}}
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| شبی سیاه بود{{سخ}}{{سخ}}
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| از آفتاب آن روز{{سخ}}
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| طالعی سنگین سر برآورد{{سخ}}
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| از مصیبت{{سخ}}
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| تنهایی زاده شد{{سخ}}
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| و از بیست و چهارِ نیسان{{سخ}}
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| پاییزی گوژ پشت سر برآورد{{سخ}}
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| زمانهای پیر و پکیده ورد زبانش{{سخ}}
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| سرزمینی دارم{{سخ}}
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| از همان کودکی{{سخ}}
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| هلهلهها از آن چوبههای دار بود{{سخ}}
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| کوچ شناسنامه اش بود و{{سخ}}
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| ظلم پارویش{{سخ}}
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| ودرختهایش زخم شمشال داشتند{{سخ}}
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| جغرافیای زنان شوهر مرده{{سخ}}
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| شهر زنان شوهر مرده{{سخ}}
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| خیابان زنان شوهر مرده{{سخ}}
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| حدود آنجا بود{{سخ}}
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| پروانهٔ کشتهٔ باران{{سخ}}
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| آیینهٔ شکستهٔ چهره ها{{سخ}}
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| نوازشگر پیچک !
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| .{{سخ}}
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| سرزمینی دارم{{سخ}}
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| که از دود به هم پیوستهاست{{سخ}}
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| دود چهارپاره شدن{{سخ}}
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| دود توتون سیگارهای پیچ{{سخ}}
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| دود بیغوله{{سخ}}
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| دود دستبند ها!{{سخ}}
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| از دریچهٔ سیاه هر کدامشان که نگاه کنی{{سخ}}
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| جنگلِ جیغش{{سخ}}
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| شاخهای از مصیبت{{سخ}}
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| و ییلاقِ اشکی ست{{سخ}}
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| که گرداب شیونش از دور پیداست
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| .{{سخ}}
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| سرزمینی دارم{{سخ}}
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| شبیه هیچکجا نیست{{سخ}}
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| شبیه هیچ گریهٔ دیگری{{سخ}}
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| و مانند هیچ سوختن دیگری نیست{{سخ}}
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| آسیابش میکنند{{سخ}}
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| خس و خاشاک دردهایش را{{سخ}}
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| به باد شمشیر{{سخ}}
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| به باد زره پوش و هواپیما میدهند{{سخ}}
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| تا هر آنچه{{سخ}}
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| که آنجا افسانه است{{سخ}}
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| بازگردد{{سخ}}
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| تا این هیزم خشک{{سخ}}
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| صنوبری شود و{{سخ}}
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| بازگردد
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| {{سخ}}
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| تا دوباره استخوان و جنازهٔ میان این آتش{{سخ}}
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| به هم آمیزد{{سخ}}
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| و تکهتکه این جسد هم{{سخ}}
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| سر پا بایستد{{سخ}}
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| رو به تمام جهان{{سخ}}
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| میگوید من کوردستانم!{{سخ}}
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| من سرزمینی دارم{{سخ}}
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| طلسم شده{{سخ}}
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| در قلادیز کشته میشود{{سخ}}
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| اما درآمد دوباره زنده میشود{{سخ}}
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| در حلبچه سرش را میزنند{{سخ}}
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| اما در کرکوک زندگی میکند{{سخ}}
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| در اربیل که بر دارش میکشند{{سخ}}
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| در ارومیه برمیخیزد{{سخ}}
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| سرزمینی دارم{{سخ}}
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| هفت بند دارد{{سخ}}
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| که از تمام سرزمینها بیشتر است.{{سخ}}<ref>10-[http://www.ana.ir/news/216472 پریدگی]، گزیدهٔ اشعار شیرکو بیکس، ترجمهٔ: محمد مهدی پور، انتشارات نصیرا 1395</ref>
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| سهرسام مهبهئهگهر بڵێم لای ئێمه رێوی شێره
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| چهقهڵ بهسهر شێرا نێره
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| مشک پشیله ڕاو ئهنێ
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| داڵ بهههڵۆ پێدهکهنێ
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| کوێر چاو ساخه
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| چاوساخ کوێره
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| == آثار شیرکو بیکس به ترتیب چاپ اول == | | == آثار شیرکو بیکس به ترتیب چاپ اول == |